देश की 137 करोड़ की आबादी पर यह कैसी आपदा आ पड़ी है, जिसके डर से हर शहर में सन्नाटा है, हर सड़क और गांव की हर चौपाल सूनी है। हर व्यक्ति वायरस से अपनी जान बचाने के बारे में सोच रहा है। यह शहर से अगर देहात में फैल जाएगा, तो संभालना मुश्किल हो जाएगा।
कोरोना का कोई इलाज नहीं है। कहा जा रहा है कि हर व्यक्ति को एक दूसरे से कम से कम एक मीटर की दूरी बनाए रखनी चाहिए, बार-बार अपने हाथों को धोते रहना चाहिए और अपने घर में ही रहना चाहिए, तभी हम वायरस को फैलने से रोक सकते हैं।
केंद्र सरकार ने तो 24 मार्च से 21 दिनों के लिए देश भर में संपूर्ण लॉकडाउन कर दिया है। मानो तो कर्फ्यू जैसे हालात हो गए हैं। कुछ राज्य सरकारों ने तो कर्फ्यू ही लगा दिया है। घरों में राशन भेजने का इंतजाम करने का एलान राज्य सरकारें कर रही हैं।
लेकिन क्या हमें अंदाज है कि जो किसान देश को भरपूर अनाज उगाकर देता है, उसके पास अपने खाने के लिए अनाज है? देश के 85 फीसदी किसानों के पास तीन एकड़ से भी कम जमीन है और उनकी फसल का पूरा पैसा ब्याज समेत कर्ज लौटाने में ही खत्म हो जाता है।
अनाज पैदा करने के बावजूद ये किसान मजदूरी करके अपने घर का राशन दुकान से खरीदते हैं। अब जब देश भर में लॉकडाउन है, तो अन्य देशवासियों के साथ छोटे और मंझोले किसानों और मजदूरों को भी राशन देना अनिवार्य होना चाहिए।
जहां देशवासी कोरोना से खुद को बचाने के बारे में सोच रहे हैं, वहीं किसान अपनी फसल और देशवासियों के आने वाले दिनों में खाने के बारे में सोच रहे हैं। इसलिए हमें भी किसानों के बारे में सोचना चाहिए। एक तरफ जहां पिछले महीने उत्तरी भारत में ओलावृष्टि के कारण सरसों, मसूर आदि की फसल बर्बाद हो गई, वहीं आज गेहूं और अन्य रबी की फसल तैयार है और लॉकडाउन खत्म होने से पहले ही कटाई का वक्त आ जाएगा।
किसान असमंजस में हैं, क्योंकि अगर वे फसल हाथों से कटवाएंगे, तो मजदूरों में कोरोना संक्रमण का डर होगा और अगर वे कंबाइन हार्वेस्टर से कटवाएंगे, तो मवेशियों के लिए भूसा नहीं मिलेगा। कंबाइन मशीन से गेहूं कटवाने और रिपर मशीन से भूसा निकलवाने से दो घाटे हैं- पहला, कटाई का खर्चा दोगुना हो जाएगा और दूसरा, भूसा 60 फीसदी कम निकलता है, जिससे भूसा और भी महंगा हो जाएगा।
किसान भूसा बचाने के लालच में हाथ से गेहूं की कटाई न करे, इसके लिए सरकार को एक साल के लिए दूध पर पांच रुपये प्रति लीटर अनुदान देने की घोषणा करनी चाहिए। साथ ही गेहूं की फसल खरीदने की तैयारी कर किसानों को तत्काल भुगतान करवाने की व्यवस्था की जाए।
ऐसे वक्त में जब मशीनों से कटवाने पर ज्यादा पैसा लगेगा, सरकार अगर 100 रुपये प्रति क्विंटल अनुदान घोषित करती है, तो फिर किसान अपनी फसल मजदूरों से नहीं कटवाएंगे और कोरोना संक्रमण को आगे बढ़ने से रोका जा सकेगा। पिछले महीने की ओलावृष्टि से किसानों को जो नुकसान हुआ, उसका मुआवजा बीमा कंपनियों से या सरकार को खुद देना चाहिए।